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तुम और मै

Updated: Aug 18, 2024

तुम नदी हो, मै उसका किनारा… मै तो सदा से, तुम्हारे ही संग चलता हूं |

बाढ आए या अकाल, मै तो तुम्हारे ही रंग रंगता हूं ।।


तुम सूर्य हो, मै उसकी किरणे… तुमसे दूर जाता हूं, पर तुम्हींसे जाना जाता हूं । तुम्हारे प्रकाश और ताप को स्वयं के भीतर समाता जाता हूं ।।


तुम चांद हो, मै करवाचौथ का व्रत… तुम्हारी एक झलक मात्र से, मै पूर्ण हो जाता हूं । पर उस इंतज़ार में, तुम्हारे इंतज़ार में, मै शिथिल हो जाता हूं ।।


तुम घनघोर वर्षा हो, में तुम्हारा मयूर… तुम्हारे आने से ही, मै सौंदर्य सीमा से परे हो जाता हूं । और तुम्हारे जाते ही, तुम्हारी यादें समेट, ग्लानि में खो जाता हूं ।।


तुम सिंदूर हो, में एक सुहागन की मांग… तुम्हारे होने से मन को, प्रसन्नता ,अखंडता का आभास हो जाता है । और तुम ना हो तो मेरा ये विशिष्ट दर्जा ही लुप्त हो जाता है ।।


तुम समय हो, मै तुम्हारी स्मृतियां… तुम्हारे बिना, मेरा अस्तित्व असंभव हो जाता है । पर मेरे बिना, तुम्हारा भी तो, महत्व समाप्त हो जाता है ।।


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