top of page

चांद और चांदनी

Updated: Aug 18, 2024


तुम चांद हो, में उस चांद की चांदनी । सब हम दोनों को, एक सत्व ही मानते है । किन्तु में तो, उस सूर्य से विद्यमान होती हूं , तुमसे इतना निकट आकर भी, तुमसे दूर चला जाती हूं । तुम हो, तभी मेरे अस्तित्व का कोई कारण है, पर अगर ‘ में ‘ ना हूं,तो तुम्हारा अस्तित्व ही बेकार है । तुमसे दूर जा, मन व्यथित तो जरूर होता है, अपनाया था सूर्य ने, ठुकराया था तुमने , पर ये दुनिया सूर्य की किरणों को तो नहीं, पर चांद की शीतलता को अवश्य निहारती है । समय बीतता है, और क्षण – प्रतिक्षण तुम पर से मेरा प्रभाव हटता है । खेद मगर, इस बात से होता है , कि इस प्रक्रिया में तुम्हारा मुख हस्ता है । अंत में, एक निशा ऐसी आती है, तुमको ,मुझसे पूर्णतः चुरा लेती है । समय बीतता है, और फिर ये दुनिया हमारे छलावे को प्रेम मान, पुनः स्वयं को फसा लेती है । तुम चांद हो, में उस चांद का चांदनी । में तुम्हारी होकर भी, तुमसे नहीं हूं, और तुम मुझसे होकर भी मेरी नहीं हो ।।


ree

Comments


bottom of page